
अमेरिकी डॉलर की हालत मिली-जुली रही. एक तरफ यूरो और ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले यह 2021 के बाद के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया, वहीं जापानी येन के मुकाबले थोड़ी मजबूती दिखाई. इसके पीछे मुख्य वजह है अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दरों में कटौती की उम्मीद और ट्रंप प्रशासन की नई टैरिफ नीति से जुड़ी चिंताएं.सवाल उठता है — आखिर डॉलर में इतनी बिकवाली कौन कर रहा है? एक्सपर्ट्स से साफ है कि अमेरिका के बाहर के निवेशक डॉलर आधारित संपत्तियों से धीरे-धीरे दूरी बना रहे हैं. यूरोपीय निवेशक जहां अमेरिकी इक्विटी (शेयरों) से निकल रहे हैं, वहीं एशियाई निवेशकों द्वारा बॉन्ड बाजार में बिकवाली देखने को मिल रही है.
Bank of America के मुताबिक, यूरोप के “रियल मनी” निवेशक — जैसे पेंशन फंड्स और इंश्योरेंस कंपनियां — इस तिमाही में डॉलर को सबसे ज़्यादा बेचने वालों में शामिल रही हैं.हालांकि असली असर शायद एशियाई समय के ट्रेडिंग में दिख रहा है — जहां डॉलर की कीमत में औसतन सबसे ज़्यादा गिरावट आ रही है. इसका मतलब यह हो सकता है कि एशियाई निवेशक अमेरिकी बॉन्ड्स पर अपने डॉलर हेज बढ़ा रहे हैं.
डॉलर क्यों गिर रहा है. फेड दरों में कटौती के संकेत है.फेड चेयर जेरोम पॉवेल ने कांग्रेस में गवाही के दौरान कहा कि अगर ट्रंप प्रशासन नए टैरिफ लागू नहीं करता, तो फेड दरों में कटौती जारी रखता. इससे बाजार को संकेत मिला कि सितंबर तक एक कटौती पक्की मानी जा रही है.
फेड की दो सदस्यों मिशेल बोमन और क्रिस्टोफर वॉलर ने भी कहा कि दरें अब जल्द घटाई जानी चाहिए. बाजार अब 2025 के अंत तक 62 बेसिस प्वाइंट की कटौती की संभावना मान रहा है, जो पिछले हफ्ते 46 प्वाइंट थी.