श्री राधा कृष्ण मंदिर आरंग में श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह-आचार्य नंदकुमार ने इन कथाओं का किया वर्णन…
आरंग। श्री राधा कृष्ण मन्दिर आरंग में श्रीमति गंगा बाई गुप्ता परिवार के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह में रायपुर से पधारे आचार्य पंडित नंद कुमार चौबे ने समुद्र मंथन की कथा का वर्णन करते हुए कहा जब देवराज इंद्र दुर्वासा महात्मा के शाप से लक्ष्मी हीन हो गए थे तब भगवान श्री हरि विष्णु जी के मार्गदर्शन में मंदराचल पर्वत की मथानी और वासुकी नाग के रस्सी बनाकर देवता दानव मिलकर छीर सागर का मंथन किया गया जिसमें सर्वप्रथम हलाहल नामक जहर निकल आया, जिससे देवता और दानव दोनों में हाहाकार होने लगा की इस हलाहल जहर को कैसे खत्म किया जाए अगर समाप्त नहीं किया जाएगा तो सारा संसार नष्ट हो सकता है इसी बात को लेकर सब देवता भगवान शिव शंकर भोलेनाथ के शरण में आए और प्रार्थना करने लगे जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उस हलाहल शहर को एक घूंट में ही पी गए, पीने के बाद भगवान शिव सोचने लगे कि मेरे हृदय में मेरे आराध्य निवास कर रहे हैं अगर मैं जहर को पेट के अंदर ले जाता हूं तो मेरे आराध्य को तकलीफ होगी और अगर बाहर वमन कर देता हूं तो सारा संसार नष्ट हो जाएगा इसी बात से चिंतित भगवान शंकर ने उस हलाहल नाम के जहर को अपने कंठ में ही रोक लिया जिससे उनके कंठ नीला पड़ गया और भगवान नीलकंठ कहलाए, समुद्र मंथन के पहले भगवान शंकर ” कर्पूर गौरम ” अर्थात कपूर जैसे गौर वर्ण के थे, जहर पीने के कारण सारा शरीर सावला हो गया और कंठ नीला पड़ गया भगवान शंकर हलाहल जहार के जलन से बचने के लिए द्वितीया के चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया जिससे भगवन शिव जी के शरीर का जलन चंद्रमा की शीतलता से शांत हुआ और भगवान शिव चंद्रशेखर, चंद्रमौली आदि नामों से प्रतिष्ठित हुए ! आगे कथा में आचार्य नंद कुमार चौबे ने कहा समुद्र मंथन करने से अमृत की प्राप्ति हुई जिस अमृत को पीने के लिए देवता और दैत्य आपस में संघर्ष करने लगे जिसके समाधान करने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु दिव्य कन्या का रूप धारण कर मोहिनी रूप में अवतार लिए और देवताओं को अमृत पिलाएं ! राहु दैत्य सूर्य और चंद्रमा के बीच में बैठकर देवता का रूप धारण करके अमृत पान कर गया जिससे क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र के द्वारा उनके गले को काट दिया जिससे राहु और केतु का निर्माण हुआ समुद्र मंथन के पहले 07 ग्रह की पूजा होती थी बाद में इन राहु और केतु को ग्रहों में सम्मिलित कर दिया गया जिससे ग्रहों की संख्या 9 हो गई जिसके कारण प्रत्येक पूजा अनुष्ठानों में नव ग्रहों की पूजा होती है आगे कथा में भगवान का वामन अवतार, भगवान के मत्स्य अवतार, सूर्यवंश में श्री राम अवतार, महर्षि जमदग्नि के यहां भगवान का परशुराम आदि कथा वर्णन करते हुए यदुवंश में देवकी के गर्भ से मथुरा में कंस के कारागृह में भगवान का श्री कृष्ण अवतार हुआ और रातों-रात वसुदेव के द्वारा गोकुल में नंद भवन पहुंचाया गया जहां पर नंद के द्वारा बाल कृष्ण के जन्म उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया।
विनोद गुप्ता-आरंग