श्रीमद्भागवत ज्ञान सप्ताह का तृतीय दिवस-कलयुग में केवल हरि नाम संकीर्तन ही सबसे सरल सहज और सुंदर साधना है-आचार्य युगल
आरंग। आज सोमवार को श्री सार्वजनिक गौरागुड़ी समिति केवशी लोधी पारा के भक्तिमय आयोजन श्रीमद्भागवत ज्ञान सप्ताह के तृतीय दिवस पर व्यास पीठ से आचार्य युगल किशोर शर्मा ने श्री राधे नाम संकीर्तन के साथ कथा की शुरुआत की एवं जड़ भरत चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बैर और वासना से नया प्रारब्ध उत्पन्न होता है और दूसरी बार जन्म लेना पड़ता है इसलिए जड़ भरत हर तरह से मन पर अंकुश रखते हैं उन्होंने दार्शनिक अंदाज में कहा कि ज्ञान और भक्ति के परिपक्व होने पर ही जीव संसार वृक्ष से इस तरह अलग हो सकता है जिस प्रकार परिपक्व होने पर फल अपने आप वृक्ष से अलग होकर गिर पड़ता है, उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में तुलसी बाबा ने एक सुंदर चौपाई लिखी है “निर्मल मन जन सो मोहि पावा मोहि कपट छल छिद्र न भावा” किंतु मन तभी पवित्र होगा जब हम आंखों को भगवत स्वरूप में स्थित करेंगे क्योंकि वासना का प्रवेश आंखों के माध्यम से ही होता है, पंडित जी ने आगे कहा कि अजामिल शब्द का अर्थ है अज का अर्थ है माया और माया में फंसा हुआ जीव ही अजामिल है, उन्होंने भगवान के नाम की महिमा का यशोगान करते हुए कहां की अजामिल ने यमदूतों के आने पर अपने पुत्र नारायण को पुकारा जिससे विष्णु दूत आ गए और कहा कि भले ही अनजाने में ही इसने भगवान का नाम लिया है अतः इसके पाप नष्ट हो गए हैं जैसे अग्नि पर अनजाने में भी पैर पड़े तो जलन तो होती ही है इसी प्रकार प्रभु का नाम लेने से कल्याण अवश्य ही होता है। श्रीमद् भागवत गीता में स्पष्ट है कि कर्म करते रहिए किंतु मन ही मन प्रभु से अपना संबंध बनाए रखिए इससे नाम जप रूपी धन बढ़ेगा और जीव कल्याण की ओर बढ़ेगा अजामिल इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि भले ही उसने अपने पुत्र नारायण को पुकारा किंतु भगवान का नाम होने के कारण उसकी अप मृत्यु टल गई lआचार्य युगल ने कहा कि ऐसे कई दृष्टांत हैं जिससे स्पष्ट है कि यदि हृदय से प्रायश्चित हो तो पापों का नाश होता है इसलिए भगवान को शरणागत बच्छल कहा जाता है ,तत्पश्चात श्री व्यास पीठ से महाराज जी ने श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा का भजन कराया जिससे श्रोतागण गदगद होकर संकीर्तन करने लगे वहीं वृतासुर के प्रसंग को पंडित जी ने बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया और भक्त प्रहलाद प्रसंग में आचार्य शर्मा ने कहा कि हिरण्यकश्यप ज्ञानी तो था किंतु उसका ज्ञान अहंकार से भरा हुआ था जो औरों को उपदेश दे स्वयं उसे अपने जीवन में न उतारे वह असुर ही होता है पंडित जी ने अपने प्रवचन में कहा कि प्रहलाद का चरित्र हमें यही सिखाता है की बाल्यावस्था से ही ईश्वर भजन में लीन हो जाना चाहिए एवं माता-पिता को चाहिए कि बालपन से ही अपने संतानों में धार्मिक संस्कारों को उत्पन्न करें बुद्धिमान पुरुष यौवन और वृद्धावस्था की प्रतीक्षा नहीं करता प्रहलाद को मारने के लिए अनेक प्रयास किए गए किंतु यह बात किसी से छिपी नहीं है की जाको राखो कन्हैया मार सके ना कोय उन्होंने सबको जीवन जीने का सुंदर मार्ग बताते हुए कहा कि अपने कर्तव्यों से मत भागो किंतु अपने कर्म प्रभु कन्हैया को अर्पित करते हुए चलो उन्हें कभी भूलो मत और उनसे सच्ची प्रीति रखो तो इस संसार से तुम्हें भय नहीं लगेगा और तुम्हारे चेहरे में प्रसन्नता होगी तथा जीवन के सभी काम बनते चले जाएंगे और अंत में परमात्मा को प्राप्त होंगे उन्होंने समाज में फैले हुए पाखंड एवं ढोंग पर प्रहार करते हुए कहा कि ईश्वर दिखावे की वस्तु नहीं है, जिसने धरती चांद और सूरज बनाया वह हमारी कल्पना से भी परे हो सकता है हमें तो केवल उन्हें अपने भाव समर्पित करते हैं और जो अपने जीवन का सब भार कन्हैया पर छोड़ देता है वह हल्का हो जाता है क्योंकि भगवान भाव के भूखे हैं इसलिए वह सबरी के झूठे बेर,सुदामा के तांदूल,और विदुर के साग खाते है वह मीराबाई ,भक्त कर्मा बाई, प्रहलाद ध्रुव आदि के हो सकते है तो वे हमारे भी हो सकते हैं उन्होंने दृढ़ विश्वास के साथ कहा कि भगवान दौड़े चले आते हैं बस उन्हें पुकारने वाला चाहिए क्योंकि कथा कहती है की दंभ मिट जाता है तो खम्भ से भी परमात्मा का प्रादुर्भाव भगवान नरसिह आते है महाभारत के द्रोपति प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि जब रानी द्रोपती सब तरीके से हिम्मत हार गई तो उन्होंने कन्हैया को दिल से पुकारा और गोविंद उनकी लाज बचाने दौड़े चले आए श्रीमद्भागवत कथा को अद्भुत बताते हुवे कहा की यह औषधि, वैद्य और औषधालय तीनो है। इस अवसर पर आचार्य युगल किशोर शर्मा ने मधुर भजनों की लंबी श्रृंखला प्रस्तुत करते हुए भक्तों को आनंदित और भाव विभोर कर दिया तथा स्वयं भी मगन हो गए इस प्रकार तृतीय दिवस की कथा पर महाआरती एवं प्रसाद वितरण के साथ सब ने प्रसन्न मन से अपने घर की ओर प्रस्थान किया।
विनोद गुप्ता-आरंग