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श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह का द्वितीय दिवस-भगवान का वराह अवतार संतोष रूपी धन का स्वरूप है-आचार्य युगल

श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह का द्वितीय दिवस-भगवान का वराह अवतार संतोष रूपी धन का स्वरूप है-आचार्य युगल

आरंग। आज रविवार को श्री सार्वजनिक गौरागुड़ी समिति केवशी लोधी पारा के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के द्वितीय दिवस व्यास पीठ आचार्य पंडित श्री युगल किशोर शर्मा ने प्रभु श्री राधामाधव के मंगलाचरण से कथा की शुरुआत की एवं वराह अवतार के संबंध में कहा कि लोभ को संतोष से मारो, वास्तव में वराह अवतार संतोष रूपी धन का ही स्वरूप है। लोभ और लालच से दूर रहकर कन्हैया हमें जिस स्थिति में रखें उसका उनके प्रति आभार माने यही वराह अवतार का रहस्य है। उन्होंने श्रीमद् भागवत के प्रथम मंत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान सत् चित आनंद स्वरूप हैं और जब व्यक्ति सत्य को धारण कर लेता है तो उसके चित् में आनंद समाने लगता है उन्होंने कहां की आज व्यक्ति लोभ लालच एवं स्वार्थ के वश में होकर सत्य के स्वरूप को भूलता जा रहा है, मजे की बात तो यह है कि झूठ को सच साबित करने के लिए वह सत्य का सहारा भी लेता है, उन्होंने कहा कि सत्य के वास्तविक स्वरूप को जानने की अत्यंत आवश्यकता है ताकि हमारा समाज सुंदर बने,उन्होंने भगवान के सत्यनारायण स्वरुप का ध्यान कराया lपरीक्षित को उन्होंने उत्तम श्रोता बताते हुए कहा कि उन्होंने उत्तरा के गर्भ में ही भगवान के दर्शन कर लिए थे उन्होंने आगे कहा कि जंगल में वृक्षों के तले बैठकर काम का दमन करना तो ठीक है किंतु इस दुनिया के मायावी जाल में रहकर भी यदि काम को जीता जाए तो परमात्मा के निकट पहुंचना आसान है, श्रीकृष्ण को कामदेव पराजित नहीं कर सका क्योंकि श्रीकृष्ण और भोलेनाथ दोनों योगेश्वर हैं श्रीकृष्ण का चिंतन मनन करने वाले को काम सता नहीं सकता, जिसे काम अधीन ना कर सके वह ईश्वर है जो काम के अधीन है वह जीव है उन्होंने कहा कि जातियां समाज का सौंदर्य है जैसे गुलशन में खिले हुए अनेक प्रकार के फूल फिर भी हम सत्य के वास्तविक प्रकाश को भूलकर अंधरे की ओर बढ़ने लगते हैं यही विडंबना है और श्रीमद्भागवत कथा के रसपान से जीवन का सुंदर मार्ग प्रशस्त होने लगता है, आगे उन्होंने कहां की यह शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है और मनुष्य ही श्रेष्ठ है क्योंकि उसके पास ज्ञान, विवेक और बुद्धि है वह गृहस्थ जीवन में रहकर भी संयम, सेवा, और सादगी को अपने आचरण में प्रस्तुत कर तप कर सकता है l उन्होंने वेद, उपनिषद ,गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि भावशुद्धि सबसे बड़ा तप है, उन्होंने अन्तःकरण की पवित्रता पर प्रेरित किया तथा ऋषभदेव को आदर्श पिता बताते हुए माता सती प्रसंग, कपिलोख्यान एवं ध्रुव चरित् पर भी प्रकाश डाला आचार्य युगल ने अपने व्याख्यान में कहा कि दक्ष प्रजापति ने देवों के देव महादेव से बैर किया अर्थात सद्भाव नहीं रखा जो यज्ञ के विध्वंस का कारण बना ,उन्होंने कहा की जीवन में यदि नीति रीति और प्रभु के प्रति प्रीति हो तो व्यक्ति नित्य त्रिवेणी संगम स्नान का लाभ प्राप्त करता है। इस दौरान श्रोता गण राधे राधे,हरि बोल की मधुर भजनों से भक्ति रस मे डूबकर नाचने भी लगे एवं महाआरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया ज्ञात हो की इस ज्ञान यज्ञ में समिति की ओर से समस्त मोहल्ले वासी एवं गणमान्य नागरिक भी बहुत अधिक संख्या में कथा श्रवण का लाभ ले रहे हैंl एवं समिति वासियों ने श्रद्धालु गणों से अधिक से अधिक संख्या में पधारने का निवेदन भी किया हैl
विनोद गुप्ता-आरंग

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