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रीवा उत्खनन-फिर मिला प्राचीन शरभपुरीय कालीन स्वर्ण मुद्रा व पुरावशेष-इन धरोहरों को संरक्षित करने कब मिलेगा विकसित पुरातात्विक केंद्र…?

रीवा उत्खनन-फिर मिला प्राचीन शरभपुरीय कालीन स्वर्ण मुद्रा व पुरावशेष-इन धरोहरों को संरक्षित करने कब मिलेगा विकसित पुरातात्विक केंद्र…?

आरंग। आरंग रायपुर मार्ग में स्थित ग्राम लखौली बस स्टैंड से 2 किमी उत्तर दिशा में स्थित लोरिक नगर गढ़ रीवा(आरंग) प्राचीन मृतिकागढ़ में वर्ष 2018-19 से जारी उत्खनन ने छत्तीसगढ़ के इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया है। प्रदेश की संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए इस वैज्ञानिक उत्खनन में मौर्यकाल से लेकर मराठा काल तक के दुर्लभ पुरावशेष सामने आए हैं।जिसने इस क्षेत्र की ऐतिहासिक महत्ता को और प्रखर कर दिया है।रीवा, जो प्राचीन व्यापारिक मार्ग मल्हार–सिरपुर–राजिम को जोड़ता था, अब अपनी मिट्टी की परतों में छिपे उस वैभवशाली अतीत को उजागर कर रहा है जिसके संकेत वर्षों तक केवल लोककथाओं में मिलते थे। उत्खनन के दौरान पंचमार्क सिक्के, मौर्यकालीन उत्तरीय कृष्णमार्जित मृदभाण्ड, सातवाहन ताम्र मुद्राएं, कुषाण कालीन सीलिंग, शरभपुरीय वंश का स्वर्ण सिक्का, कलचुरी राजाओं रत्नदेव, जाजल्लदेव व प्रतापमल्लदेव की मुद्राएं, वलयकूप, मिट्टी के खिलौने, लौह उपकरण तथा 36 मीटर व्यास वाला विशाल मृदा स्तूप जैसे अभूतपूर्व साक्ष्य मिले हैं।इतिहासकारों के अनुसार रीवा का सांस्कृतिक कालक्रम पूर्व मौर्य युग से उत्तर मध्यकाल तक फैला हुआ है। मिट्टी की नौ परतों में अलग-अलग कालखंडों के पुरावशेष मिलने से यह स्थान आधुनिक छत्तीसगढ़ के प्राचीन नगरीकरण का जीवंत दस्तावेज बन गया है। विशेष रूप से प्राप्त वलयकूप प्रदेश में अपनी तरह का पहला और अत्यंत महत्वपूर्ण प्रमाण माना जा रहा है, जो प्राचीन जल प्रबंधन प्रणाली की उन्नत तकनीक को सिद्ध करता है।शरभपुरीय कालीन स्वर्ण मुद्रा जिस पर ‘श्रीमद् क्रमादित्य’ अंकित है ने सिद्ध कर दिया है कि यह क्षेत्र न केवल व्यापारिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध रहा है। इसी प्रकार कलचुरी शासकों की स्वर्ण व ताम्र मुद्राएं इस क्षेत्र में मध्यकालीन राजनीतिक गतिविधियों के महत्वपूर्ण केंद्र होने की पुष्टि करती हैं।संग्रहालय निर्माण की प्रबल मांग इतिहास प्रेमियों व स्थानीय नागरिकों का कहना है कि रीवा से मिले ये दुर्लभ सिक्के, मृदभाण्ड, मूर्तिकला, स्तूप अवशेष और वलयकूप जैसे बहुमूल्य पुरातात्विक साक्ष्य प्रदेश की धरोहर हैं। इन्हें सुरक्षित रखने और शोधकर्ताओं के अध्ययन हेतु संरक्षित करने के लिए रीवा में स्थायी संग्रहालय की तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही है।विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यहां संग्रहालय की स्थापना की जाए तो यह स्थल छत्तीसगढ़ पर्यटन का एक प्रमुख आकर्षण बन सकता है, साथ ही आने वाली पीढ़ियां अपने समृद्ध इतिहास को प्रत्यक्ष रूप में देख सकेंगी।रीवा उत्खनन से प्राप्त सामग्री ने प्रदेश के इतिहास में कई नई कड़ियां जोड़ी हैं। अब आवश्यकता है कि इन धरोहरों को संरक्षित कर रीवा को एक विकसित पुरातात्विक केंद्र के रूप में स्थापित किया जाए।
विनोद गुप्ता-आरंग

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