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श्री कृष्ण ने पर्यावरण संरक्षण के लिए गोवर्धन पूजा कराया-आचार्य नंदकुमार चौबे

श्री कृष्ण ने पर्यावरण संरक्षण के लिए गोवर्धन पूजा कराया -आचार्य नंदकुमार चौबे

आरंग। नगर के प्राचीन श्री राधा कृष्ण मंदिर प्रांगण में श्रीमती गंगाबाई गुप्ता एवं उनके परिवार द्वारा पति स्व. रामशरण गुप्ता बैहार वाले के स्मृति मे आयोजित श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पंचम दिवस की कथा में आचार्य पंडित नंदकुमार चौबे जी ने कहा जब-जब पृथ्वी पर गौ माता के ऊपर, ब्राह्मणों के ऊपर, संत महात्माओं के ऊपर और वेद शास्त्र सनातन धर्म के ऊपर अत्याचार होता है, तब-तब भगवान अनेक रूपों में अवतरित होते हैं और दुष्टों के संघार करके पुनः धर्म की स्थापना एवं अपने भक्तों की रक्षा करते हैं । इसी क्रम में द्वापर युग में भगवान कृष्ण मथुरा के कारागृह में प्रकट हुए और गोकुल वृंदावन में अनेक सुंदर-सुंदर लीला किये, यमुना जी में कालिय नाग निवास करता था और यमुना जी के पीने योग्य शुद्ध जल को अपने जहर से जहरीला बना दिया था जिसके कारण वृंदावन के रहने वाले मनुष्य, पशु ,पक्षी सभी पीड़ित थे जिससे चिंतित होकर बालकृष्ण ने कालिय नाग का मर्दन करते हुए उन्हें यमुना जी से बाहर निकाला और जल को शुद्ध एवं पीने योग्य बनाया, इस प्रकार भगवान कृष्ण ने जल का शोधन करके पर्यावरण का संरक्षण किया । ब्रजवासी कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को देवराज इंद्र के पूजा करते थे तब भगवान कृष्ण विचार किये की देवराज इंद्र के पूजा करने के बजाय क्यों न हम गोवर्धन पर्वत का पूजा करें क्योंकि गोवर्धन पर्वत से हमें गौ माता के खाने के लिए हरे- हरे घास प्राप्त होता है और बड़े-बड़े आंधी तूफान से भी पर्वत हमारी रक्षा करते हैं इस पर्वत के उपकार के बदले हमें इनकी पूजा करके इनका सम्मान करनी चाहिए, भगवान के इस निर्णय से एक संदेश निकलता है कि हमें स्थानीय वस्तुओं का, लोगों का सम्मान करनी चाहिए ,उन्हें महत्व देनी चाहिए इसी को कहते हैं “वोकल फार लोकल” आज हम विदेशियों के ऊपर या बाहरी व्यक्तियों के ऊपर ज्यादा विश्वास करते हुए उन्हें महत्व देते हैं और अपने आसपास के लोगों का उपेक्षा करते हैं अगर हम स्थानीय लोगों को महत्व देंगे तो उनके द्वारा हमें समय-समय पर सहयोग प्राप्त होता रहेगा इसी उद्देश्य से भगवान कृष्ण ने इंद्र पूजा को बंद कर के गोवर्धन जी की पूजा करने का निर्णय लिया और पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें दिव्य संदेश दिया ताकि हम पर्यावरण संरक्षण के लिए नदी, नाला, पर्वत- पहाड़ ,वन- जंगल सब की रक्षा करें क्योंकि यह सब हमारे जीवन के लिए आवश्यक है । एक बार ब्रज में नारद जी का आगमन हुआ तब सभी गोपियों ने नारद जी का बड़ा ही स्वागत सत्कार करते हुऎ नारद जी से प्रश्न किए की हम कैसे कृष्ण जी को अपने पति के रूप में प्राप्त कर सकती हैं, जिस पर नारद जी ने गोपियों के प्रति माता कात्यायनी की पूजा- व्रत करने का उपदेश दिया जिससे भगवान श्रीकृष्ण उन्हें प्राप्त हो सके जिसे सुनकर गोपियां बड़ी प्रसन्न हो गई और हेमन्त ऋतु के पहले महीने मार्गशीर्ष में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में यमुना नदी जाति थी और स्नान करने के बाद बालू से कात्यायानी देवी मूर्ति बनाकर 16 प्रकार पूजन करती और कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करती थी जिससे कालांतर में श्री कृष्ण जी ने महारास लीला के माध्यम से गोपियों की इच्छा पूरी किये ।आचार्य नंदकुमार चौबे जी ने भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी का विवाह प्रसंग का वर्णन करते हुए बताएं की विदर्भ देश की राजकुमारी रुक्मणी जो बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण से विवाह करना चाहती थी उनके भाइयों ने श्रीकृष्ण के विरोध करते हुए चेदि देश के राजकुमार शिशुपाल से विवाह करने का निश्चय किया लेकिन रुक्मणी के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के लिए पत्र भेजा गया जिसे पढ़कर भगवान कृष्ण रुक्मणी जी का हरण करके विधि विधान से विवाह संपन्न करायें । आयोजक परिवार द्वारा बड़े उत्साह पूर्वक रुक्मणी और कृष्ण का विवाह महोत्सव मनाया गया जिसमें, राधा कृष्ण मंदिर के सभी सदस्य गण एवं नगर के प्रबुद्ध वर्ग और श्रद्धालु आसपास के कथा प्रेमियों का अपार भीड़ देखा जा रहा है।

विनोद गुप्ता-आरंग

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