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श्रीमद भागवत कथा का सप्तम दिवस-दीक्षा गुरु एक होता है किंतु शिक्षा गुरु अनेक हो सकते हैं-आचार्य युगल

श्रीमद भागवत कथा का सप्तम दिवस-दीक्षा गुरु एक होता है किंतु शिक्षा गुरु अनेक हो सकते हैं-आचार्य युगल

आरंग।श्री सार्वजनिक गौरागुड़ी समिति केवशी लोधी पारा के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन आज आचार्य युगल शर्मा में भगवान दत्तात्रेय विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान दत्तात्रेय ने अनुभव सिद्ध बात कही है की आनंद बाहर के विषयों में नहीं भीतर है और उन्होंने बताया है की दीक्षा गुरु एक होता है किंतु शिक्षा गुरु अनेक हो सकते हैं भगवान दत्तात्रेय ने अपने 24 गुरुओं जैसे धरती ,वायु, आकाश, जल ,अग्नि चंद्रमा ,सूर्य ,कबूतर, अजगर समुद्र, पतंगा, भ्रमर, हाथी, मधुमक्खी आदि से भी शिक्षा ली है। उन्होंने सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि वृत्रासुर, प्रहलाद, बलि राजा, विभीषण, सुग्रीव,, कुब्जा, ब्रज की गोपियों आदि सत्संग के द्वारा ही भगवान को प्राप्त कर सके वे वेदों से भी अज्ञात थे और उन्होंने तप भी नहीं किया था फिर भी सत्संग प्रेरित भक्ति के कारण वो भगवान के प्रिय पात्र बने, उन्होंने रामायण की चौपाई के माध्यम से कहा कि बिनु सत्संग विवेक न होई ,सत्संग से मनुष्य ही क्या पशु पक्षी तक का जीवन सुधरता है और कामी के साथ रहकर ध्यान आदि नहीं हो सकता। इसलिए आचार्य युगल ने हरि नाम संकीर्तन को कलयुग से पार करने वाली नौका बताया आचार्य शर्मा ने कहा कि सतयुग में विष्णु के ध्यान से त्रेता युग में यज्ञ से द्वापर में विधिपूर्वक विष्णु पूजन से जो फल मिलता था वही फल कलयुग में भगवान के नाम कीर्तन से मिलता है परीक्षित मोक्ष विषय पर प्रकाश डालते हुए महाराज जी ने कहा श्रीमद् भागवत महापुराण श्रवण के पांच फल निर्भरता, संशय रहित ,हृदय में प्रभु का साक्षात प्रवेश, और सभी में भगवान दर्शन तथा परम प्रेम यह पांचो फल परीक्षित ने प्राप्त किया और उनका मोक्ष हुआl आचार्य शर्मा ने श्रीमद् भागवत के श्लोकों का सस्वर उच्चारण करते हुए कहा कि जो लोग सदा अपने घर में भागवत शास्त्र का पठन पूजन करते हैं मानो एक कल्प के लिए संपूर्ण देवताओं को तृप्त करते हैं, उन्होंने भगवान का कथन याद दिलाया कि जो इस कथा को सुनता है या जो इस कथा को कहता है अथवा मेरी कथा सुनकर प्रसन्न होता है उस मनुष्य का मैं कभी त्याग नहीं कर सकता आचार्य श्री ने श्रीमद्भागवत कथा का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह ऐसी दिव्या रसभरी पावन कथा है जिससे आनंद की प्राप्ति होती है। गोपियों ने घर नहीं छोड़ा गोपिया घर का काम भी करती थी, उन्होंने स्वधर्म का त्याग भी नहीं किया, वह जंगल भी नहीं गई और तप भी नहीं किया फिर भी उन्होंने भगवान को पा लिया क्योंकि उनका प्रत्येक व्यवहार ही भक्तिमय था उन्होंने कहा कि गोपियों जहां भी जाती अपने संग कन्हैया को अनुभव करती महाराज श्री ने स्पष्ट कथन किया कि घर में रहकर भी श्री भगवान का दर्शन हो सकता है उन्होंने श्रीमद् भागवत को भगवान से मिलने मिलाने का साधन बताया और कहा की संसार के विषय सुखों से धीरे-धीरे विरक्ति और प्रभु के प्रति प्रेम का बढ़ना यही श्री भागवत कथा की लीला का उद्देश्य है उन्होंने श्रद्धालु जनों से मार्मिक संदेश देते हुए कहा कि जब भी घर से बाहर निकलो श्री ठाकुर जी की वंदना करके निकलो, ईश्वर केवल प्रेम चाहते हैं और प्रेम ही देते हैं क्योंकि भगवान श्री कृष्णा यही मानते हैं कि जीव मेरा ही अंश है और ऐसे ही भावपूर्ण भक्ति से भागवत कथा मनुष्य को निर्भय बना देती हैl उन्होंने तुलसी वर्षा पर कहा कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां नकारात्मक ऊर्जा ठहर नहीं सकती उन्होंने कहा कि भगवान ने तुलसी के सतीत्व को देखते हुए उसे मां लक्ष्मी के समान ही दर्जा दिया है तथा भक्ति के प्रेम में वे शालिगम बन गए और आज भी तुलसीदल के बिना पवित्र कार्य संपन्न नहीं होते।

इस अवसर पर आचार्य युगल ने नशा मुक्ति के लिए भी प्रेरित करते हुए लोगों से संकल्प करवाया एवम अपने भक्तिमय भजनों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया तथा वे समूह बनाकर आनंद से नृत्य भी करने लगे, इस प्रकार भजनमंडली, गीत संगीत वाद्य यंत्र एवं कन्हैया की मधुर झांकी के साथ समापन शोभा यात्रा में हजारों की संख्या में भक्तगण शामिल हुए एवं सार्वजनिक गौरागुड़ी समिति केवशी लोधी पारा ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सभी सहयोगी, श्रद्धालु जनमानस एवं मीडिया बंधुओ के प्रति आभार व्यक्त किया।
विनोद गुप्ता-आरंग

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