श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह का चतुर्थ दिवस-सत्संग के माध्यम से अपने मन का मंथन करें तो निश्चित ही समझ रूपी अमृत हमें प्राप्त होगा-आचार्य युगल किशोर
आरंग। आज मंगलवार को श्री सार्वजनिक गौरा गुड़ी समिति केवशी लोधी पारा के सप्त सोपान, सप्त संकल्प, भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह में रायपुर से आए व्यास पीठ से आचार्य पंडित युगल किशोर ने गोविंद माधव मदन मुरारी भजन से कथा की शुरुआत की गजेंद्र मोक्ष पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि द्वारिका नाथ निराधार के आधार हैं तथा उन्होंने कहा कि श्री हरि के सुदर्शन चक्र से काल रूपी मगरमच्छ का नाश हुआ, समुद्र मंथन पर उन्होंने कहा कि समय-समय पर यदि हम सत्संग के माध्यम से अपने मन का मंथन करें तो निश्चित ही समझ रूपी अमृत हमें प्राप्त होगा और जीवन में मधुरता आएगी, आगे कहा की अन्य को सुखी करने के लिए जो स्वयं दुख(हलाहल विष) सह ले वही शिव है और जो स्वयं को सुखी करने के लिए दूसरों को दुखी करें वह जीव है अपनी गूढ़ व्याख्या में उन्होंने कहा कि मोहनी मोह का ही स्वरुप है और जो मोहिनी के आसक्त हो जाए उसे भला अमृत कैसे मिल सकता है। आचार्य युगल ने कहा कि अगर दृष्टि सुधरेगी तो सृष्टि भी सुधर जाएगी और श्रीमद्भागवत में अष्टावक्र कथा से स्पष्ट है कि परमात्मा कृति को देखते हैं और मनुष्य आकृति को इसलिए भेद बुद्धि से भगवान नहीं मिलेंगे, भागवत के श्लोक का वर्णन करते हुए उन्होंने सनातन धर्म के चार पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम और मोक्ष की व्याख्या की और कहा कि धर्म ही पहली सीढ़ी है, वास्तव में धर्म का अंतिम और उत्कृष्ट अर्थ केवल और केवल प्रेम है, प्रेम को पंचम और पवित्र पुरुषार्थ बताते हुए कहा कि पुरुषार्थ का आधार प्रेम हो तो आप युग निर्माता बन सकते हैंl आचार्य ने श्रोताओं को प्रेरित करते हुए कहा कि मानव में अन्य जीवों के प्रति प्रेम करुणा दया और क्षमा का भाव होना चाहिए साथ ही शास्त्रोक्त प्रमाण देते हुए कहा की प्रकृति को माता स्वरूप माना गया है और इसके प्रति हमारे मन में करुणा जागरूकता का भाव हो तो कई त्रासदियों से बचा जा सकता है, उन्होंने जीव हत्या का भी निषेध किया, आचार्य युगल ने भगवान वामन के अवतार कथा के रहस्य को प्रकट करते हुए बताया कि राजा बलि जीवात्मा है और वामन परमात्मा, बलि राजा के गुरु शुक्राचार्य हैं इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति शुक्र(गुरु) की सेवा वीर्य और ब्रह्मचर्य की रक्षा करता है अर्थात जो संयमी है वह परमात्मा की कृपा पा जाता है । राम अवतार में पंडित जी ने रामचरितमानस के हर पात्र को दिव्य बताया तथा कहा कि दसमुख और दशरथ के बीच राम है उन्होंने भरत के त्याग को आदर्श बताते हुए कहा कि उन्होंने राजपद नहीं राम पद का वरण किया, उन्होंने राजा मोरध्वज की पावन नगरी आरंग को प्रणाम करते हुए कहा कि धन्य है यह भूमि जहां भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का भी आगमन हुआ आचार्य युगल ने जब श्री कृष्ण प्राकट्य का वर्णन किया तो श्रद्धालु गण परम आनंद की स्थिति में पहुंच गए उन्होंने कहा कि चंद्र रोहिणी नक्षत्र में जब दिशाएं स्वच्छ हुई, आकाश निर्मल हुआ, नदी का नीर निर्मल हुआ, वन में पंछी और भवरे गुनगुनाने लगे, शीतल सुगंधित समीर बहने लगा, स्वर्ग में बाजे बजने लगे और मुनि और देवगण आनंद से पुष्प वृष्टि करने लगे उसी समय परम पवित्र सत चित आनंद स्वरूप श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी रात्रि मध्यान में कमल नयन चतुर्भुज नारायण भगवान बालक का रूप लेकर वसुदेव देवकी के समक्ष प्रकट हुए भगवान ने अपने श्री हस्त में शंख चक्र गदा और पदम धारण किए हैं चारों ओर प्रकाश बिखर गया और उनका चतुर्भुज स्वरूप यह बताता है कि उनके चरणों की शरण लेने वाला चारों पुरुषार्थों को सिद्ध कर लेता है जो भक्त अनन्यता से श्री हरि की आराधना करता है उसे धर्म अर्थ काम और मोक्ष चारों भगवान प्रदान कर देते हैं और कुछ पल बाद भगवान का चतुर्भुज स्वरूप अदृश्य हो गया और बाल कन्हैया प्रकट हो गए इस प्रकार पूरा पंडाल हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की ध्वनि से गूंज उठा । पंडित जी ने कहा कि प्रत्येक इंद्री को यदि भक्ति रस में भिगो दिया जाए तो विषय रूपी पवन सता नहीं पाएगा जब 11 इंद्रियां ध्यान में एकाग्र होती हैं तभी प्रभु से साक्षात्कार हो पता है इसी कारण गीता जी में भी 11वें अध्याय में अर्जुन को विश्वरूप के दर्शन होते हैं वासुदेव जी का कारागृह से बाहर जाना, शेषनाग के रूप में बाल कृष्ण पर छत्र का धारण करना, यमुना जी का लहरों के साथ आनंदित होना और वासुदेव का योग माया को टोकरी में वापस लाना आदि प्रसंगों के साथ बताया कि इधर जब कंस योग माया के पांव पकड़कर उसे पत्थर पर पीटने लगा तो आदिमाया ने कंस के सिर पर ही एक लात जमा दी और हाथों से छूटकर आकाशवाणी हुई कि पापी तेरा काल तो अवतरित हो गया है और सुरक्षित भी, इस प्रकार से भगवान की मधुर लीलाओं का वर्णन करते हुए आचार्य युगल ने राधे-राधे जप लो चले आएंगे बिहारी, हरि बोल, कन्हैया आला रे आदि भजनों से भक्तों को आल्हादित कर दिया और मानो भक्ति रस की धारा बह निकली इस प्रकार आचार्य युगल किशोर शर्मा ने श्रद्धालु गणों को प्रेरित करते हुए कहा कि श्रीमद् भागवतकथा श्रीकृष्ण स्वरूप ही है जो आपको पुरुषार्थ रूपी प्रेम की ओर ले जाती है इसलिए अपने दायित्व एवं कर्तव्य का निष्ठा से पालन करते हुए धर्मानुकूल आचरण व्यवहार करें।
विनोद गुप्ता-आरंग