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विशेष-गांवों की अर्थव्यवस्था को फिर से मिलनी चाहिए मजबूती-समाज फिर से अपने संस्कारों को याद कर गौठान व गौवंश संरक्षण में निभाए सक्रिय भूमिका

विशेष-गांवों की अर्थव्यवस्था को फिर से मिलनी चाहिए मजबूती-समाज फिर से अपने संस्कारों को याद कर गौठान व गौवंश संरक्षण में निभाए सक्रिय भूमिका

आरंग।गांवों की पहचान केवल खेत-खार और तालाबों से नहीं होती, बल्कि उन व्यवस्थाओं से होती है जो ग्रामीण जीवन की रीढ़ बनती हैं। ऐसी ही एक मजबूत व्यवस्था है गौठान। यह सिर्फ संरचना नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धड़कन हैं। बीते वर्षों में इनकी उपेक्षा ने गांवों की पारंपरिक प्रणाली को कमजोर किया है, पर अब समय आ गया है कि इनकी धड़कन को फिर तेज किया जाए।उल्लेखनीय हो कि हर गांव में कम से कम 2 -3 एकड़ अधिकतम 8-10 एकड़ भूमि गौठान के नाम दर्ज है। लेकिन इन जमीनों को सुरक्षित रखना ग्राम पंचायतों के लिए आसान नहीं है। कई जगह चारागाह, तालाब व पंचायत की भूमि तक अतिक्रमण की चपेट में है। ऐसे में गौठान के क्रियान्वयन का रास्ता और कठिन होता जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि जमीन ही सुरक्षित नहीं, तो गौठान योजना स्थायी रूप से कभी सफल नहीं हो सकेगी।गौ संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, पर हकीकत गांवों में जाकर ही समझ आती है। आवारा मवेशियों की समस्या, चारे की कमी और देखरेख की अनियमितता आज भी जस की तस है। ऐसे में किसानों का कहना है कि प्रशासन, पंचायत और समाज तीनों को मिलकर एक ठोस व्यवस्था बनानी होगी।विशेषज्ञ बताते हैं कि यदि हर किसान साल में सिर्फ एक गाड़ी पैरा गौठान को दे दे, तो चारे की कमी तत्काल दूर हो सकती है।सरकार यदि सोसायटी के माध्यम से धान खरीदी के साथ “अनिवार्य पैरा समर्थन” पर जोर दे, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा मिल सकता है।दुग्ध उत्पादन बढ़ाने, पशुपालन को रोजगार से जोड़ने और युवाओं को डेयरी यूनिट के लिए प्रेरित करने जैसे कदम गौठान को फिर से आत्मनिर्भर बना सकते हैं।जब मॉडल गौठान बनते थे तो उम्मीदें बड़ी थीं। पर आज कई मॉडल गौठान सुनसान, जर्जर और गतिविधिहीन दिखते हैं। यह स्थिति सरकार और पंचायत दोनों के लिए चेतावनी है कि यदि निगरानी ढीली रही तो करोड़ों का निवेश बेकार साबित होगा। ग्रामीणों का कहना है कि प्रतिनिधि गांव-गांव जागरूकता अभियान चलाएं, ताकि लोग इसे अपनी जिम्मेदारी समझें।जन्म-जन्म का नाता है, गाय हमारी माता है।यह भावना केवल नारा नहीं, बल्कि संस्कृति की नींव है। खैराती योजनाओं की लत ने लोगों को अधिकार देना तो सिखाया, पर कर्तव्य भूलने पर मजबूर कर दिया। अब जरूरत है कि समाज फिर से अपने संस्कारों को याद करे और गौठान व गौवंश संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाए।गौठान ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धड़कन हैं, और इन्हें पुनर्जीवित करने का समय यही है।सरकार योजनाएं दे, जनप्रतिनिधि जिम्मेदारी निभाएं और जनता सहभागी बने तभी एक नया, सक्षम और आत्मनिर्भर छत्तीसगढ़ आकार ले सकेगा।
विनोद गुप्ता-आरंग

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