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राजतंत्र को प्रजा के प्रति सजग होना चाहिए-आचार्य पं.नंदकुमार चौबे

राजतंत्र को प्रजा के प्रति सजग होना चाहिए -आचार्य पं. नंदकुमार चौबे

आरंग। श्री राधा कृष्ण मंदिर प्रांगण आरंग में श्रीमती गंगा बाई गुप्ता के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ में व्यासपीठ से आचार्य पंडित नंद कुमार चौबे रायपुर वाले ने कहा संस्कार बचपन में ही दिया जा सकता है क्योंकि गीली मिट्टी को आकार दिया जाता है जबकि मिट्टी के पके हुए बर्तन में संशोधन या बदलाव की संभावना नहीं होती इसी प्रकार एक उम्र के बाद किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को बदलने में कठिनाई होती है बचपन से ही नकल करने की स्वाभाविक गुण होने के कारण बच्चे अपने माता-पिता का अनुसरण करने लगते हैं और यहीं से उनके सीखने का क्रम प्रारंभ होता है। आचार्य जी ने कहा सूर्यवंश में राजा दशरथ के यहां चार पुत्र हुए जिसमें कौशल्या पुत्र राम जी का चरित्र बड़ा ही अनुकरणीय और प्रशंसनीय रहा है क्योंकि राम जी बचपन से ही अपने माता-पिता से ज्ञात संस्कार से प्रेरित होकर जो भी कार्य करते हैं वे दुसरे बच्चों के लिए अनुकरण करने योग्य होता था जैसे प्रातः काल उठकर अपने माता-पिता का प्रणाम करना, अपने गुरुजनों को या अपने से बड़ों का आदर करना एवं अपने माता-पिता से आदेश लेकर किसी भी कार्य को करना दूसरों के लिए प्रेरणादायक होता था और यह सारा ज्ञान श्री राम जी ने अपने माता कौशल्या एवं पिता दशरथ जी से संस्कार के रुप में प्राप्त किए थे यह गुण आज भी हमारे बच्चों के लिए अनुकरण करने योग्य है इसके लिए आज के माता-पिता को भी अपने बच्चों के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए स्वयं में परिवर्तन लाने का प्रयास करना चाहिए ।आचार्य चौबे जी ने राज धर्म, दान धर्म, मोक्ष धर्म, स्त्री धर्म, भगवत धर्म के अन्तर्गत राज धर्म का वृहद व्याख्या करते हुए कहां जब 27 वर्ष के उम्र में श्री राम जी को अपने पिता राजा दशरथ के आदेशानुसार 14 वर्ष के लिए तपस्वी भेष धारण करके जंगल जाना पड़ा और वहां रावण के द्वारा श्री सीता जी का हरण हो गया जिससे व्याकुल होकर सामान्य मनुष्य की भांति श्री राम जी विलाप करते हुए जंगल जंगल भटकते हुए पंपासर में जाकर वानर- राज सुग्रीव से मित्रता की और वानर सेवा के सहयोग से सेतुबंध के बाद रामेश्वर के रूप में भगवान शिव का स्थापना किया और लंका में चढ़ाई कर के दुर्दांत रावण, कुंभकरण और मेघनाथ का वध करके उनके भाई विभीषण को लंका के राजा के रूप में नियुक्त किया और अपने पत्नी सीता जी को लेकर वापस अयोध्या आए फिर अयोध्या में उनका राज्याभिषेक हुआ और श्री राम जी के द्वारा अपनी प्रजा का पालन किया गया । राजा का धर्म होता है कि वे प्रजा का पुत्रवत पालन करें तथा अपने और प्रजा के मध्य संतुलन बनाए रखें जिसमें राजा राम पूर्ण रूप से सामर्थ्यवान रहे, राजा प्रजा का शोषण करने वाला नहीं होना चाहिए बल्कि पोषण करने वाला हो, राजा का कर्तव्य अपने राज्य के संचालन के लिए अपनी प्रजा से आवश्यकता अनुसार ही कर ( टैक्स) लेना चाहिए जरूरत से ज्यादा कर (टैक्स)लेने पर प्रजा दुखी होता है और उनका जीवन संकट में आ जाता है इस बात को ध्यान में रखते हुए श्री राम जी ने अपनी प्रजा के प्रति बड़े ही सद्भाव पूर्ण व्यवहार करते थे जिससे अयोध्या वासी उनके प्रजा उत्तरोत्तर सुखी एवं राज कार्य से संतुष्ट रहते थे । राजा का धर्म होता है कि वह अपने प्रजा का हर हाल में ध्यान रखें जिससे प्रजा को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना करना ना पड़े । जब श्री राम जी की पत्नी सीता जी को लेकर अयोध्या वासियों के मन में गलत धारणा बनने लगा तो अपनी पत्नी सीता जी को जंगल में वाल्मीकि जी के आश्रम में रखकर अपने प्रजा का सही ढंग से पालन- पोषण करते हुए राजधर्म का पालन किया ! कथा में गुप्ता परिवार के सभी रिश्तेदार इष्ट मित्रों के साथ साथ आसपास के ग्रामीण कथा श्रोताओं का निरंतर आगमन हो रहा है तथा श्री राधा कृष्ण मंदिर ट्रस्ट के सभी सदस्य एवं पदाधिकारीयों के साथ कथा लाभ ले रहे हैं।

विनोद गुप्ता-आरंग

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