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धान कटाई के बाद खेत सूने-फसलों को सुरक्षित करने के हो उपाय नहीं तो एक बड़ा कृषि क्षेत्र पूरी तरह धान पर हो जायेगा निर्भर

धान कटाई के बाद खेत सूने-फसलों को सुरक्षित करने के हो उपाय नहीं तो एक बड़ा कृषि क्षेत्र पूरी तरह धान पर हो जायेगा निर्भर

आरंग।धान कटाई पूरी हो चुकी है और समर्थन मूल्य पर धान खरीदी 31 जनवरी को समाप्त होने के बाद खेती-किसानी करने वाले हाथ एक बार फिर खाली बैठे हैं। गांव के किसान चिंतित हैं कि आगे उनके पास कोई ठोस काम नहीं बचा। वह दौर याद करते हैं जब लगभग एक दशक पहले हर खेत में दलहन और तिलहन की लहराती फसलें दिखती थीं चना, मसूर, सरसों जैसी फसलें किसानों को सालभर काम और आमदनी दोनों देती थीं।लेकिन खुले में घूमते पशु धन की चराई ने इन फसलों को धीरे-धीरे खेतों से गायब कर दिया। किसानों ने गांव-गांव में गौठान बनने के बाद बड़ी उम्मीदें पाली थीं कि अब जानवर नियंत्रण में रहेंगे और वे फिर से रबी सीजन में दलहन–तिलहन बो सकेंगे। पर वास्तविकता इसके विपरीत रही गौठान अपेक्षित रूप से सक्रिय नहीं हुए और घुमन्तु पशुओं की समस्या जस की तस बनी रही।किसानों का कहना है कि धान के बाद खेत खाली पड़े हैं, पर सुरक्षा की गारंटी के अभाव में वे आगे फसल बोने का जोखिम नहीं उठा पा रहे। नतीजा यह है कि कृषि आधारित रोजगार ठहर गया है और किसान दिन भर गांव में बेकार घूमने को मजबूर हैं।ग्रामीण अंचल के बुजुर्ग किसान बताते हैं पहले हम धान बेचते ही दूसरी फसल में लग जाते थे। अब घुमन्तु पशुओ के डर से खेत में बीज डालना भी बेकार लगता है।किसान लगातार शासन-प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि गौठानों को पूरी तरह सक्रिय किया जाए।चराई नियंत्रण के लिए प्रभावी व्यवस्था बनाई जाए और रबी फसलों को सुरक्षित करने के उपाय किए जाएं। नहीं तो एक बड़ा कृषि क्षेत्र पूरी तरह धान पर निर्भर होकर रह जाएगा, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ेगा।ग्रामीणों का मानना है सुरक्षा मिले तो खेत फिर लहलहाने लगेंगे उन्हारी की फसलें।

विनोद गुप्ता-आरंग

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