धर्म-धरती फोड़कर स्वयं प्रकट हुई माँ विंध्यवासिनी करती है सबकी मनोकामना पूरी-इस बार प्रज्ज्वलित किये गए 2479 घृत ज्योति-पढ़िए मंदिर की इतिहास गाथा
आरंग।भारतीय संस्कृति में माँ का स्थान अमूल्य है। कहते है कि सारे सागर की स्याही बना ली जाये और धरती को कागज तो वो भी मों की महिमा लिखने में कम पड़ जायेंगे, ऐसी होती है माँ दुर्गा माँ जननी माँ मातृभूमि गौमाता । दुर्गा माता के नौ रूपों का नवरात्र में विशेष महत्व है। इसकी पूजा उपासना होती है प्रथम चैत्र माह में वारात्रिक नवरात्र दूसरा अश्विन माह में शारदीय नवरात्र भक्त जन नवरात्र में ज्योति प्रज्जावलित कर भक्ति रस में खुब रम जाते हैं माता को चढ़ावा चढ़ाते है। माँ विंध्यवासिनी के दरबार में भक्त जन श्रद्धा के दीप में आशा और विश्वास की बाती से दीप ज्योति प्रज्ज्वलित करतें है। माँ के चरणो में आकर बिना मांगे मनोवांछित फल पाते है। माँ विंध्यवासिनी के दरबार में अपनी सेवाएं दे रहे धर्म नगरी आरंग के पुरोहित आचार्य भानु प्रताप शर्मा, योगेश्वर शर्मा तथा जितेंद्र शर्मा गुड्डा महाराज
ने बताया कि 35 साल में दूसरी माता के प्रतिमा से चोला छोड़ने के बाद माता नये रूप में दर्शन दे रही है जिसका दर्शन लाभ प्राप्त करने बड़ी दूर दूर से श्रद्धालु मंदिर पहुच रहे है। उन्होंने बताया मंदिर को भी मकराना के पत्थर से साज सज्जा कर नया रूप दिया गया है जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।यहां इस नवरात्री में 2479 मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित किया गया है।माँ विंध्यवासिनी मंदिर के इतिहास गाथा बारे जानकारी देते हुए पुरोहितों ने बताया कि वसुंधरा (पृथ्वी) में प्रकट हुई स्वयं भू नगर आराध्य भाता विध्यवासिनी देवी माँ बिलाई माता देवी देवताओं के गढ़ छत्तीसगढ़ में श्रद्धा भक्ति और विश्वास की आस्था का गढ़ है। इसी कड़ी में अंचल का पूर्वी क्षेत्र धर्म नगरी प्रपद्धती में धार्मिक स्थान प्राकृतिक धरोहर को आज भी संजोकर रखा है। जिस भुमि में जगत माता विंध्यवासिनी का वास है, वहाँ वात्सल्य, प्रेम, करुणा और शांति का भाव है। छत्तीसगढ़ के धमतरी के बस स्टेण्ड से 02 कि. मी. की दूरी में माता विंध्यवासिनी देवी का मंदिर है। माता धरती फोड़कर (स्वयं भू) प्रकट हुई है। इसे विंध्यवासिनी माता कहते है जो कि अंचल में बिलाईमाता के नाम से प्रसिद्ध है।शास्त्र वेद भागवत पुराणनुसार :— विंध्यवासिनी माता जी श्री कृष्ण जी की बहन है। योग माया कृष्ण बहन नन्दजा यशोदा पुत्री विंध्यवासिनी माँ विंध्याचल वासिनी मां की मूर्ति पाषण श्याम रंग की है। शिवमहापुराण में वार्णित है। नंद गोप गृहे माता यशोदा गर्भ संभव तत्सवै नास्यामि अम्बे भैया गौरी माता विंध्यवासिनी देवी भो के 108 नाम है। धार्मिक इतिहास मान्याता धार्मिक विश्वास और राज लेखनुसार यह क्षेत्र पहले घनघोर बनबिवान जंगल था। एक समय राजा नरहरदेव राजधानी कांकेर से सैनिको के साथ इस स्थान में शिकार खेलने आये राजा के सैनिक आगे की ओर बढ़ रहे थे, एकाएक अचानक उनका दल बल सैनिक हाथी घोड़े रुक गये। काफी प्रयास के बाद भी आगे बढ़ने में विफल रहे । राजा सैनिक वापस चले गये। दूसरे दिन भी यह घटना हुई । राजा ने सेनापति को आदेश दिया कि इस स्थान पर ऐसा क्या है पता करें। सैनिक ने आदेश का पालन किया। खोजबीन जांच में उन्होंने देखा पाया कि एक असाधरण पत्थर तेजमयी आकर्षक, मनमोहक, मंत्रमुग्ध है। उनके आस पास जंगली बिल्लीयां बैठी थी। राजा को सूचना दी गई, राजा आये, वे इस असाधारण पत्थर को देखकर मंत्रमुग्ध आकर्षित हो गये। वे आपने सेनापति को आदेश दिये कि इसे यहां से हटाकर राजधानी कांकेर में स्थापित करें। सैनिक राजा का आदेश पाकर खुदाई कार्य में जूट गये। अचानक वहां से जल की अविरल धारा निकलना आरम्भ हो गयी तो खुदाई कार्य रोक दिया गया।रात्रि में राजा नरहरदेव को देवी माँ ने स्वप्न दिया की राजन मुझे यहाँ से न ले जाये, मैं नहीं जाऊँगी, तुम्हारे सारे प्रयास विफल होंगे । मेरी पूजा अर्चना इसी स्थान पर करें। यह जगत के लिए मंगलमय कल्यालकारी सुखमय, शांति और मनोकामना पूर्ण करने वाली होगी। मेरा आर्शीवाद सभी को मिलेगी। तब
सर्वप्रथम गोड़ राजा नरहरदेव के शासनकाल में मंदिर का निर्माण किया गया। धमतरी की श्रीमती चन्द्रभागा बाई माँ विंध्यवासिनी मंदिर में मनौती मन्नत माँगी थी जिसके पूर्ण होने के तत्पश्चात् सन् 1917 में उनके द्वारा मंदिर का जीर्णोधार किया गया था। मंदिर परिसर में बाबा भोलेनाथ एवं हनुमान जी का आर्शीवाद भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।
विनोद गुप्ता-आरंग