धर्म-हरि प्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु जागेंगे निद्रा से-शुरू होंगे मांगलिक कार्य…..

परमेश्वर श्रीहरि के शयन करने की अवधि चातुर्मास का पर्व समापन कार्तिक शुक्ल एकादशी आरंग में 12 नवंबर मंगलवार को मनाया जाएगा। इसी दिन श्री विष्णु निद्रा को त्यागते हैं जिसके परिणामस्वरूप जड़ता में भी चेतनता का संचार हो जाता है। यह एकादशी परमेश्वर श्री विष्णु को सर्वाधिक प्रिय है और इसी के प्रभाव स्वरूप सृष्टि में नई ऊर्जा-स्फूर्ति का संचार होता है। देवताओं में भी सृष्टि को सुचारू रूप से चलाने की नूतन शक्ति का संचार हो जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के मध्य श्री विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और भौदों शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं। प्राणियों के पापों का नाश करके पुण्य वृद्धि और धर्म-कर्म में प्रवृति कराने वाले श्रीविष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को निद्रा से जागते हैं। तभी सभी शास्त्रों ने इस एकादशी को अमोघ पुण्यफलदाई बताया गया है। एकादशी का महत्व बताते हुए गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि, तिथियों में मैं एकादशी हूँ। अतः एकादशी के दिन श्रीकृष्ण का आवाहन-पूजन आदि करने से उस प्राणी के लिए कुछ भी करना शेष नहीं रहता। श्री विष्णु के शयन के फलस्वरूप देवताओं की शक्तियां तथा सूर्य देव का तेज क्षीण हो जाता हैं। सूर्य कमजोर होकर अपनी नीचराशि में चले जाते हैं या नीचा भिलाषी हो जाते है जिसके परिणामस्वरूप ग्रह मंडल की व्यवस्था बिगड़ने लगती है। प्राणियों पर अनेकों प्रकार की व्याधियों का प्रकोप होता है। इस एकादशी से श्री विष्णु निद्रा त्यागकर पुनः सुप्त सृष्टि में नूतनप्राण का संचार कर देते हैं। भक्तगण को इस दिन श्रीविष्णु की क्षीरसागर में शयन करनेवाली मूर्ति-छायाचित्र को घर के मध्यभाग या उत्तर-पूर्व भाग में स्थापित करें। ध्यान, आवाहन, आसन, पाद प्रच्छालन, स्नान आदि कराकर वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, ऋतूफल, गन्ना, केला, अनार, आवंला, सिंघाड़ा अथवा जो भी उपलब्ध सामग्री हो वो अर्पण करते हुए पूजा अर्चना की जाती है।
विनोद गुप्ता-आरंग


